May 22, 2021

Zindagi ki Rasoi jaise

 

जिंदगी की रसोई में बहुत कुछ पक रहा है
यूँ समझों खाना ही है, बहु भोज,
एक डिश है जिंदगी,
मर्ज़ी है हमारी, कैसी भी बनाऊँ,
बहुत मसाले डालो तो कहीं जाकर
पकवान चटपटा बनता है,
मालूम है, ज़्यादा मसाला अच्छा भी नहीं
मगर बाद का अभी क्यों सोचना,

कभी तो ऐसा भी होता है
जो सब्जी मुझे पसंद नहीं
तो हम देखते भी नहीं तरफ़ उसके,
बहुत कहती है माँ हमें कि
ये हमारी सेहत के लिए अच्छी है,
मगर हमें सेहत से कहीं जयादा
मुंह का सवाद जो चाहिए,
फिर कभी जब तबियत खराब हो जाए
तो याद आती है अच्छे पोष्टिक खाने की,

ऐसी ही तो कहीं है जिंदगी,
सब अपने सवाद के हिसाब से हमें चाहिए,
फिर कभी उलझ जाए जिंदगी तो
हमें पीछे छुटी नापसंद बातें याद आती हैं,
काश! हम जिंदगी की उम्मीदों को
थोड़ा सा कम ही रखते,
जिंदगी हर तरह की लज़्ज़तों से भरी है,
फीका, मिर्च मसाला हर तरह से,
थोड़ा ख्याल किया करते
तो सेहत और जिंदगी थोड़ी संभाल लेते,

सुगम बडियाल

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