सपनों के पीछे Sapnon Ke Peche
सपने देखो! भागो, जीयो,
थक जाएं तो थोड़ा आराम कर लेने की
इज़ाज़त दो इन आँखों को,
कुछ जनून भरने की,
कुछ ना मुमकिन तो नहीं,
कहीं रास्ते पहाड़ पार होंगे,
कुछ ना खुशनुमा से यकीन होंगे,
पर बेबाक दिलो दिमाग कर चढ़े
जवान ऐ मिज़ाज फितूर होंगे,
थक जाएं तो थोड़ा आराम कर लेने की
इज़ाज़त दो इन आँखों को,
कुछ जनून भरने की,
कुछ ना मुमकिन तो नहीं,
कहीं रास्ते पहाड़ पार होंगे,
कुछ ना खुशनुमा से यकीन होंगे,
पर बेबाक दिलो दिमाग कर चढ़े
जवान ऐ मिज़ाज फितूर होंगे,
एक अंधेरा कमरा रहने को था मिला हमें,
एक दुर से छनकर आई रोशनी से
आबोहवा में कितनी उम्मीद सी जगी,
उस अंधेरे को कितना सहारा मिला,
जो अपना भी नहीं था
कितना प्यार, उम्मीद थी उस रोशनी से
कि जीने का पैगाम मिला,
कुछ ना खुशनुमा से यकीन होंगे,
पर बेबाक दिलो दिमाग कर चढ़े
जवान ऐ मिज़ाज फितूर होंगे,
एक दुर से छनकर आई रोशनी से
आबोहवा में कितनी उम्मीद सी जगी,
उस अंधेरे को कितना सहारा मिला,
जो अपना भी नहीं था
कितना प्यार, उम्मीद थी उस रोशनी से
कि जीने का पैगाम मिला,
कुछ ना खुशनुमा से यकीन होंगे,
पर बेबाक दिलो दिमाग कर चढ़े
जवान ऐ मिज़ाज फितूर होंगे,
मन की गहराई में भी एक
दीवार पर रखा एक दीया है,
आग जलाने अभी कोई आया नहीं,
जहाँ न कोई आता न कोई जाता है,
उस यकीन की दीवार पर
आता जाता राहगीर एक "मैं" ही हूँ,
बस! यकीन करके खुद की शक्ति पर
एक चिंगारी जलाने की तमन्ना है,
कुछ ना खुशनुमा से यकीन होंगे,
पर बेबाक दिलो दिमाग कर चढ़े
जवान ऐ मिज़ाज फितूर होंगे,
दीवार पर रखा एक दीया है,
आग जलाने अभी कोई आया नहीं,
जहाँ न कोई आता न कोई जाता है,
उस यकीन की दीवार पर
आता जाता राहगीर एक "मैं" ही हूँ,
बस! यकीन करके खुद की शक्ति पर
एक चिंगारी जलाने की तमन्ना है,
कुछ ना खुशनुमा से यकीन होंगे,
पर बेबाक दिलो दिमाग कर चढ़े
जवान ऐ मिज़ाज फितूर होंगे,
सुगम आसान सपने जैसा कुछ भी नहीं,
हर दिन रात जैसा है,
हर रात जैसे उम्मीद है कल नये
दिन के साथ सपनों के बोझ को लेकर
निकल जाने की, खंगाल कुछ दौर,
पुराने वर्षों को पीछे छोड़ आकर,
फिर और नये सपनों का बोझ
उठा चल पड़ता हूँ,
कुछ ना खुशनुमा से यकीन होंगे,
पर बेबाक दिलो दिमाग कर चढ़े
जवान ऐ मिज़ाज फितूर होंगे,
हर दिन रात जैसा है,
हर रात जैसे उम्मीद है कल नये
दिन के साथ सपनों के बोझ को लेकर
निकल जाने की, खंगाल कुछ दौर,
पुराने वर्षों को पीछे छोड़ आकर,
फिर और नये सपनों का बोझ
उठा चल पड़ता हूँ,
कुछ ना खुशनुमा से यकीन होंगे,
पर बेबाक दिलो दिमाग कर चढ़े
जवान ऐ मिज़ाज फितूर होंगे,
सपने में ही तो हैं हम सब,
फिर भी वो ढूंढने निकल पड़े हैं
जिस से बहुत दूर भाग आये थे हम
बहुत दूर... बहुत ही दूर,
ज़िन्दगी मेरे साथ थी, पास बैठी थी,
मगर कभी मौका ही नहीं देख पाये,
इस जान के भीतर लाखों लोग सपने ही तो थे,
सपने बहुत नज़दीक थे, मगर
कभी मुट्ठी भर भी भरोसा नहीं भर पाये,
सपने से हकीकत बना पाने का,
क्योंकि कुछ ना खुशनुमा से यकीन होंगे,
खुद से खुद पर सिमटते सवालों के
जवाब बेशुमार होंगे!
फिर भी वो ढूंढने निकल पड़े हैं
जिस से बहुत दूर भाग आये थे हम
बहुत दूर... बहुत ही दूर,
ज़िन्दगी मेरे साथ थी, पास बैठी थी,
मगर कभी मौका ही नहीं देख पाये,
इस जान के भीतर लाखों लोग सपने ही तो थे,
सपने बहुत नज़दीक थे, मगर
कभी मुट्ठी भर भी भरोसा नहीं भर पाये,
सपने से हकीकत बना पाने का,
क्योंकि कुछ ना खुशनुमा से यकीन होंगे,
खुद से खुद पर सिमटते सवालों के
जवाब बेशुमार होंगे!
सुगम बडियाल🌼
Comments