एक धीमी लौ की तरह,
वही आग की तरह जलते हैं,
लफ्ज़ जो भी हैं वही पुराने हैं
वजूद की आग में जलते हैं,
साथ हमारे सिवा कुछ भी नही,
पैरों के छाले बताते हैं पैसे का
हमसे मज़ाक कर आते जाना रहना,
हर किताब में भी यही फरमाया,
मैं कोई महान लिखारी नहीं
ज़िन्दगी की कहानी का किरदार हूँ
शायद में कहानी हूँ, नहीं यां गीत हूँ,
नहीं मैं कविता हूँ छोटी सी
कहने के लिए एक कविता है,
अभी भी बहुत कुछ कहती है,
कुछ भी कहने के बिना,
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