कि हम उनकी महफ़िलों में
बैठने लायक नहीं,
पर मुसकरा के हम
यही कहते हैं
कि कुछ तो लोग कहेंगे,
और वैसे भी कुछ तो
नज़ाकत हममें भी होगी,
तभी तो आपकी महफ़िल में
हमारा भी ज़िक्र होता है,
काश! हम गुलाब होते तो कितने मशहूर होते किसी के बालों में, किसी के बागों में, किसी मसजिद में, तो कभी किसी मजहार पे सजे होते, . काश! हम गुलाब ...
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